मसीहुज़्ज़मा अंसारी | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | ग्रेटा, तुम उस देश के आंतरिक मामलों पर कैसे बोल सकती हो जहां संविधान नहीं बल्कि मनुस्मृति सरकार में बैठे लोगों के लिए आदर्श है. तुम उस पार्टी की नीति के विरुद्ध कैसे बोल सकती हो जहां स्त्री को केवल किसी स्त्री के विरुद्ध बोलने के लिए ही स्वीकार किया जाता है. जहां सत्ता हासिल करने के लिए स्त्री के माँ का स्वरूप दर्शाया जाता है मगर किसी स्त्री को सत्ता के शिखर पर बैठने का अवसर नहीं दिया जाता. जहां स्त्री की पूजा तो की जाती है मगर गालियां स्त्री के नाम पर ही दी जाती है. जहां औरत के प्रधानमंत्री बनने की संभावना मात्र से विदेशी कह कर विरोध करने के लिए किसी औरत को लाकर उसके विरुद्ध खड़ा कर दिया जाता है.
तुम्हारा गुनाह सिर्फ बोलना नहीं है ग्रेटा बल्कि एक स्त्री होकर भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ बोलना है. जो पार्टी और विचारधारा किसी स्त्री को अपनी पार्टी का मुखिया नहीं बनाती वो पार्टी किसी औरत का बोलना और उनके विरुद्ध बोलना कैसे स्वीकार कर सकती है. ग्रेटा, तुम कंगना होती तो और बात होती.
ग्रेटा, तुम उस देश के आंतरिक मामलों में कैसे हस्तक्षेप कर सकती हो जहां जलवायु कोई मुद्दा नहीं बल्कि मंदिर और मस्जिद सबसे प्रिय मुद्दे हैं जिसे हर हिंदुस्तानी बच्चा अपनी माँ की गोद से सीखना शुरू कर देता है. तुम उस देश के मामलें में कैसे बोल सकती हो जहां करोड़ों अशिक्षित और बेरोज़गार हों मगर शिक्षा और रोज़गार कोई मुद्दा नहीं बनता. तुम भारत के मामले में कैसे बोल सकती हो जहां प्रदूषण से लोगों को खतरनाक बीमारियां तो होती हैं लेकिन कभी कोई जनांदोलन नहीं होता.
तुमने बोलने की हिम्मत कैसे की ग्रेटा जहां प्रतिरोध की आवाज़ों को क़ैद कर लिया जाता है. तुम्हारे देश में होगी किसी छात्रा को पार्लियामेंट के सामने जलवायु के मुद्दे पर प्रदर्शन करने की आज़ादी, मगर हमारे देश में प्रदर्शन करने वाले छात्रों को तिहाड़ भेज दिया जाता है, वो छात्र परीक्षा देने पुलिस के पहरे में ही आते हैं. यहां तुम्हारे देश की तरह बच्चों को सामाजिक मुद्दों पर पढ़ने, बोलने और प्रदर्शन से पहले छात्रों को लाइब्रेरी में ही पुलिस द्वारा लाठियों से फूल बर्साया जाता है. यहां एक छात्र के प्रदर्शन करने पर ज़्यादा कुछ नहीं होता बस एक दो दर्जन के हाथ-पैर टूट जाते हैं और कुछ की आँखे हमेशा के लिए चली जाती हैं.
ग्रेटा, तुम दुनिया भर में जलवायु कार्यकर्ता के रूप में पहचानी जाती होगी लेकिन किसान आंदोलन को लेकर ट्वीट करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है. किसानों के मरने का सिलसिला तुम्हारे जन्म से भी पहले का है इसलिए तुम नहीं बोल सकती.
प्रिय ग्रेटा, तुम जलवायु के मुद्दे पर दुनिया भर में सफर करती होगी और सागर की ख़तरनाक लहरों का सामना भी करती होगी मगर किसान आंदोलन पर बोलने से पहले याद रखना की भाजपा और संघ की लहरों का सामना करना तुम्हारे बस की बात नहीं है.
ग्रेटा, तुम चाहे जितनी बड़ी जलवायु कार्यकर्ता हो लेकिन तुम्हारा इस देश में कोई स्वागत नहीं है क्योंकि तुम भजपा को कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सकती.
ग्रेटा तुम ग्रेट हो लेकिन भाजपा और संघ तुमसे कहीं ज़्यादा ग्रेट है.