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Wednesday, April 24, 2024
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APCR की फैक्ट फाइंडिंग टीम का आरोप, मध्यप्रदेश में हुई हिंसा में सरकार की भूमिका

पर्वेज़ बारी | इंडिया टुमारो

भोपाल | मध्यप्रदेश के हिंसा प्रभावित क्षेत्र उज्जैन, मंदसौर और इंदौर से लौटी मानवाधिकार संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) की फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने यह दावा किया है कि सांप्रदायिक गुंडों को राज्य में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा इकठ्ठा करने के नाम पर हंगामा खड़ा करने की अनुमति देने के मामले में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश सरकार और पुलिस की कथित मिलीभगत की बात अब खुलकर सामने आचुकी है.

यह आरोप एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) की फैक्ट-फाइंडिंग टीम के द्वारा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद प्रेस से बात करने के दौरान लगाये गए.

यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि उज्जैन, चंदनखेड़ी (इंदौर) और डोराना (मंदसौर) में भगवा ब्रिगेड के बदमाशों ने बहुसंख्यक मुस्लिम इलाकों पर ग्रुप में सांप्रदायिक हमला किया था, जिस घटना ने 2020 के अंत में तनावपूर्ण माहौल पैदा किए.

गुरुवार को यहां एक ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए एडवोकेट एहतेशाम हाशमी और एडवोकेट शोएब इनामदार (राष्ट्रीय सहायक संयोजक, एपीसीआर) ने बताया कि, “एपीसीआर की फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने इन हिंसा प्रभावित स्थानों के लोगों से विस्तार से बात की.” उन्होंने आगे बताया कि, “हमने प्रत्यक्षदर्शियों, पीड़ितों और पुलिस अधिकारियों से बात की ताकि यह समझ सकें कि हिंसा कैसे हुई.”

इनके अलावा एपीसीआर फैक्ट फाइंडिंग टीम में एडवोकेट मुकेश किशोर (सदस्य CPI-ML), काशिफ अहमद फ़राज़ (पत्रकार), एडवोकेट जवलंत सिंह चौहान, एम हुज़ेफा (स्टूडेंट एक्टिविस्ट, एएमयू), और सैयद अली (सामाजिक कार्यकर्ता) शामिल थे जो मध्यप्रदेश में पूर्वनियोजित सांप्रदायिक हमले के बाद वहां का दौरा किया.

एडवोकेट एहतेशाम हाशमी ने कहा कि, लोगों से बात करने और हिंसा प्रभावित स्थानों का दौरा करने के बाद यह बात स्पष्ट है कि यह हिंसा स्वतः उत्पन्न घटना नहीं थी बल्कि कथित तौर पर बीजेपी से सम्बन्ध रखने वाले दक्षिणपंथी तत्वों द्वारा पूर्व नियोजित हमला था.

ऐडवोकेट हाशमी ने कहा कि, “हमने जहां का भी दौरा किया वहां सभी जगह हिंसा का एक समान पैटर्न देखने को मिला. 25 दिसंबर 2020 को उज्जैन में पांच अलग-अलग स्थानों से एक धार्मिक रैली का आयोजन किया गया था. वो सभी पांच रैलियां बाद में बेगम बाग इलाके में इकठ्ठा हुइं, जो अल्पसंख्यक (मुस्लिम) बाहुल्य इलाका है. भीड़ ने अचानक आपत्तिजनक नारे लगाना शुरू कर दिये, जिसके कारण भीड़ और स्थानीय निवासियों के बीच झड़पें शुरू हुईं. स्थानीय महिलाओं को दी जा रही आपत्तिजनक गालियों के जवाब में कथित तौर पर एक महिला ने हिंसक भीड़ पर पत्थर फेंक दिया. ज़ाहिरी तौर पर इस पत्थरबाज़ी  ने माहौल को लड़ाई में बदल गया. स्थिति का लाभ उठाने  के लिए हिंसक भीड़ ने स्थानीय आबादी के पुरुषों की पिटाई शुरू कर दी और आसपास के क्षेत्र में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. यह पूरी घटना स्थानीय पुलिस की मौजूदगी में हुई.”

उन्होंने आरोप लगाया कि, “घटना के जवाब में पुलिस ने स्थानीय क्षेत्र के ही उन 40 निवासियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिन्हें दक्षिणपंथी भीड़ ने उकसाया था. उकसावा हिंसक भीड़ की तरफ से था और पूरी पुलिस कार्रवाई में पुलिस द्वारा पीड़ितों को ही हिंसा के लिए निशाना बनाया गया और उन पर आरोप लगाया गए.”

उन्होंने आरोप लगाया कि, “पुलिस की कार्रवाई एकतरफा, गैरकानूनी और मनमानी थी. चंदनखेड़ी (इंदौर जिला) और दोसना (मंदसौर जिला) के गाँवों के बाकी स्थानों पर भी इसी तरह के पैटर्न का इस्तेमाल किया गया था. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के नाम पर निकाले गए जुलूस के बाद घटना शुरू हुई.

एडवोकेट शोएब इनामदार ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, “रैलियों को ज़बरदस्ती मुस्लिम इलाकों में ले जाया गया, जहां बेहद आपत्तिजनक सांप्रदायिक और भड़काऊ नारे लगाए गए. इसके बाद बड़े पैमाने पर हिंसा हुई जिसमें भीड़ द्वारा विशेष रूप से मस्जिदों और मुस्लिम संपत्तियों को निशाना बनाया गया. कई जगहों पर उन्होंने मुसलमानों के घरों और वाहनों को भी नष्ट कर दिया.”

हिन्दुत्ववादी भीड़ ने पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिमों पर हमला किया

एडवोकेट इनामदार ने बताया कि जुलूस पूर्व नियोजित तरीके से बड़ी संख्या में तेज धार वाले घातक हथियारों के साथ स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय को अपमानजनक नारेबाजी करके उकसाने के लिए आयोजित किया गया था, जबकि स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने इस उकसावे का कोई जवाब नहीं दिया था. पूर्व नियोजित इरादे के साथ इकट्ठी की गई भीड़ और पूरी योजना के साथ गाँव के आखिरी घर तक को निशाना बनाया गया जो चारों तरफ से खुला था.

उन्होंने आरोप लगाया कि, “इन स्थानों पर निर्दोष मुसलमानों की ज़िंदगियों पर हुए क्रोध और हमले की पूरी घटना ने पुलिस को बौना साबित किया. कई चश्मदीदों और गवाहों ने निर्दोष लोगों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा में नाकाम पुलिस की निष्क्रियता और असंवेदनशीलता की बात की. लोगों के अनुसार हिंसा के दिन सुबह से शाम तक वहां जंगलराज था.”

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