इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने एक पत्र लिखकर ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध क़ानून, 2020’ को वापस लेने की मांग की है.
हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस पत्र पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.
पूर्व नौकरशाहों द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखा गया यह पत्र, कथित “लव जिहाद” पर बने अध्यादेश के एक महीने के बाद लिखा गया है.
इस ख़ुले ख़त में 104 पूर्व नौकरशाहों ने हस्ताक्षर किए हैं. इनमें से एक हस्ताक्षर पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिवशंकर मेनन का है. साथ ही पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव, पूर्व प्रधानमंत्री सलाहकार रहे टीकेए नायर जैसे बड़े नाम इसमें शामिल हैं.
पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखे गए इस ख़ुले ख़त में कहा गया है कि, “उत्तर प्रदेश कभी गंगा-जमुनी तहज़ीब को सींचने को लेकर जाना जाता था, वह अब नफरत, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बन गया है.”
पत्र में चिंता जाताते हुए कहा गया है कि, “कथित लव जिहाद को रोकने के लिए बने अध्यादेश की वजह से गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए मशहूर प्रदेश में प्रशासनिक संस्थाएं भी सांप्रदायिकता के ज़हर में डूबी हुई हैं.”
पत्र में कथित तौर पर अल्पसंख्यकों का निशाना बनाने के मामलों का भी उल्लेख है.
ज्ञात हो कि, उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 के तहत अब तक विभिन्न जिलों से 54 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, जबकि 86 लोगों पर मामला दर्ज है.
जानकारी के मुताबिक पिछले एक महीने में बिजनौर और शाहजहांपुर में दो-दो और फिरोजाबाद, एटा, बरेली, मुरादाबाद, कन्नौज, हरदोई, सीतापुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, आजमगढ़, मऊ और गौतम बुद्ध नगर में एक-एक एफआईआर दर्ज की गई.
नए कानून के प्रावधानों के तहत सबसे अधिक एटा में 26 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, इनमें से 14 के खिलाफ एक ही मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई है.
पूर्व नौकरशाहों द्वारा पत्र में लिखा गया है, “यह अत्याचार, कानून के शासन के लिए समर्पित भारतीयों के आक्रोश की परवाह किए बिना जारी हैं.”
पत्र के अनुसार, “धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश का इस्तेमाल एक छड़ी के रूप में किया जा रहा है, खासतौर पर उन भारतीय पुरुषों को पीड़ित करने के लिए जो मुस्लिम हैं और महिलाएं हैं जो अपनी आजादी का इस्तेमाल करने की हिम्मत रखती हैं.”
पत्र लिखने वालों का कहना है कि, “इलाहाबाद हाईकोर्ट समेत अलग-अलग उच्च न्यायालयों ने इस बात पर फैसला सुनाया है कि किसी के जीवनसाथी का चयन करना एक मौलिक अधिकार है. जिसकी गारंटी संविधान के तहत उत्तर प्रदेश को है.”
पत्र में यह भी कहा गया है कि, “आप लोगों को अपने आप को उस संविधान के बारे में फिर से शिक्षित करना चाहिए जिसकी आपने शपथ ली है.”