इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | असम सरकार द्वारा मदरसों को बंद करने के आदेश को जमाअत इस्लामी हिन्द के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष नुसरत अली ने इस फैसले को भाजपा और असम सरकार की मुस्लिम विरोधी नीति क़रार दिया है.
असम में राज्य द्वारा संचालित मदर्सों को सरकार ने बंद करने की घोषणा की है. असम के मंत्री हिमांता बिस्व शर्मा ने घोषणा की है कि राज्य के सभी सरकारी मदरसे बंद किए जाएंगे और इस आदेश का नोटिफिकेशन अगले महीने से जारी कर दिया जाएगा. असम सरकार के इस आदेश के बाद मुस्लिम संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है.
जमाअत इस्लामी हिंद के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड ने असम के शिक्षा मंत्री द्वारा सभी सरकारी मदरसों को बंद करने और उनकी फंडिंग को रोकने के फैसले की निंदा करते हुए इसे मुस्लिम-विरोधी नीति कहा है.
ज्ञात हो कि असम में सरकार द्वारा 614 मदरसे संचालित किए जा रहे हैं जबकि 900 प्राइवेट मदरसे हैं. दूसरी तरफ असम में लगभग 100 सरकारी संस्कृत संस्थान हैं और 500 प्राइवेट हैं. सरकार ने केवल मदरसों को बंद करने की बात कही है.
असम सरकार ने मदरसों को बंद करने के पीछे तर्क दिया है कि जनता के रुपयों से धार्मिक शिक्षा देने का प्रावधान नहीं है इसलिए सरकारी मदरसे नहीं संचालित होंगे.
पत्रकारों से बात करते हुए असम सरकार के मंत्री ने कहा, “किसी भी धार्मिक शिक्षा वाले संस्थान को सरकारी फंड से संचालित नहीं किया जाएगा. हम इसका नोटिफिकेशन नवंबर में जारी करने जा रहे हैं और इसे तत्काल लागू कर दिया जाएगा. हम प्राइवेट मदरसों के संचालन के बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं.”
जमाअत इस्लामी हिन्द ने असम सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा करते हुए सरकार द्वारा अपनाए जा रहे इस रवैये पर नाराज़गी ज़ाहिर की है.
जमाअत इस्लामी के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष, नुसरत अली ने कहा है, “एक तरफ सरकार शिक्षा के सार्वभौमिकता और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को शिक्षा से जोड़ने की बात करती है तो दूसरी तरफ असम की भाजपा सरकार मुस्लिम संस्थानों की वित्तीय सहायता को रोक कर मुस्लिम-विरोधी नीति अपना रही है. इस कोरोना महामारी के दौर में जनविरोधी कानून पारित करने वाली केंद्र सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए असम की राज्य सरकार भी जनविरोधी फैसले ले रही है.”
असम सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए नुसरत अली ने कहा कि, “इस फैसले से न केवल मदरसे में पढ़ने वाले हज़ारों छात्रों की शिक्षा बाधित हो जाएगी बल्कि यह फैसला शिक्षकों और कर्मचारियों को भी नौकरी से बेदखल कर देगा.”
उन्होंने कहा, “इस संबंध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को असम सरकार के इस निर्णय पर ध्यान देना चाहिए.”
असम सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए, नुसरत अली ने कहा कि, “जमाअत इस्लामी हिन्द का केंद्रीय शिक्षा बोर्ड, मदरसों की वित्तीय सहायता को बरक़रार रखने के लिए सभी लोकतांत्रिक और कानूनी उपायों पर विचार करेगा.”
अपने बयान में जमाअत के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष नुसरत अली ने कहा है कि असम के शिक्षा मंत्री ने तर्क दिया है कि सरकार धार्मिक शिक्षा संस्थानों की वित्तीय सहायता नहीं कर सकती है, हालाँकि आलिया मदरसा प्रणाली राज्य में लगभग एक सदी से कार्य कर रही है.”
उन्होंने कहा, “वर्तमान सरकार राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक विशेष समुदाय को निशाना बना रही है.”