इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के प्रमुख अर्नब गोस्वामी द्वारा दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है जिसमें मुंबई पुलिस द्वारा टीआरपी में हेरफेर करने के आरोप में दर्ज एफआईआर में जारी किए गए समन पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा है.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा की, “हमें अपने हाईकोर्ट पर विश्वास रखना चाहिए. हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बिना सुनवाई से ग़लत संदेश जाता है.”
लाइवलॉ.इन के अनुसार, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने कहा, “अनुच्छेद 226 या धारा 482 के तहत हाईकोर्ट जाइए.” इस पर, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने हाईकोर्ट से गुहार लगाने के लिए याचिका वापस लेने पर सहमति जताई.
इस मामले में सुनवाई के दौरान पीठ ने पुलिस आयुक्तों के व्यवहार पर भी चिंता व्यक्त की जिन्होंने मीडिया में बयान दिया है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि, “जिस तरह से पुलिस आयुक्त इन दिनों प्रेस को साक्षात्कार दे रहे हैं उससे हम भी चिंतित हैं.”
मुंबई पुलिस ने 8 अक्टूबर को मीडिया को दिए बयान में कहा कि, “टीआरपी हेरफेर और धोखाधड़ी का बड़ा मामला सामने आया है जिसमें रिपब्लिक टीवी और दो मराठी चैनलों को एफआईआर में आरोपी के रूप में दर्ज किया गया है.”
इन चैनलों द्वारा टीआरपी के लिए ऐसे लोगों को शामिल किया गया था जो पढ़े लिखे नहीं थे. पुलिस ने कहा कि उन्हें चैनल देखने के लिए हर महीने लगभग 400-500 रुपये का भुगतान किया जाता था.
पुलिस ने ये भी कहा है कि उन्होंने हंसा रिसर्च ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है जो ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) की सहायता कर रहा था.
लाइवलॉ.इन के अनुसार, BARC टीआरपी रेटिंग तैयार करता है और कार्यक्रमों की निगरानी भी करता है. इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों में 30000 बैरोमीटर स्थापित किए गए हैं. सांख्यिकीय मीट्रिक के आधार पर, BARC विभिन्न टीवी चैनलों को रेटिंग प्रदान करता है.
जिन लोगों के घरों में ये बैरोमीटर लगाए गए हैं उनमें से कई ने पुलिस को बयान दिया है और यह स्वीकार भी किया है कि उन्हें अपने टीवी चालू रखने के लिए पैसा दिया गया है.