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Wednesday, April 24, 2024
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कोटा: नहीं लौटे कोचिंग छात्र, हॉस्टल मालिकों पर बैंकों का एक हज़ार करोड़ से अधिक का बक़ाया

कोटा हॉस्टल एसोसिएशन का कहना है कि कोटा में करीब 3 हजार हॉस्टल हैं, जिनमें लगभग सवा लाख कमरे हैं. यहां से हर साल करीब 12 सौ करोड रु. का कारोबार होता था. पीजी से भी करीब 450 करोड़ रु. का कारोबार था.

रहीम ख़ान | इंडिया टुमारो

कोटा, 4 अक्टूबर  | देश के कोने कोने से हर साल डेढ़ से दो लाख छात्र डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना संजोए हुए कोचिंग करने के लिए कोटा आते हैं. यही छात्र कोटा शहर की अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी है. देश और पूरे विश्व में छाए कोरोना संकट के कारण कोटा में कोचिंग पूरी तरह से बंद हैं. बाहर से स्टूडेंट्स नहीं आने का बड़ा असर कोचिंग के साथ साथ हॉस्टल मालिकों पर भी पड़ा है.

कोटा शहर को पूरे देश में कोचिंग नगरी और कोचिंग हब के रूप में जाना जाता है. यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करवाई जाती है. देश के कोने कोने से हर साल डेढ़ से दो लाख छात्र डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना संजोए हुए कोचिंग करने के लिए कोटा आते हैं.

कोटा में 2500 से 3000 के क़रीब छोटे-बड़े हॉस्टल आज सुनसान हो गए हैं. सैकड़ों हॉस्टल्स, स्टूडेंट्स नहीं होने से एक बड़े वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं क्योंकि इन हॉस्टल्स पर बैंकों का 1000 करोड़ से ज़्यादा का क़र्ज़ का बक़ाया है जिन हॉस्टल संचालक की लाखों रुपये महीने की किश्त बैंकों को जाती है.

कोटा हॉस्टल एसोसिएशन का कहना है कि कोटा में करीब 3 हजार हॉस्टल हैं, जिनमें लगभग सवा लाख कमरे हैं. यहां से हर साल करीब 12 सौ करोड रु. का कारोबार होता था. पीजी से भी करीब 450 करोड़ रु. का कारोबार था.

कोचिंग संस्थान में पढ़ाई बंद होने की वजह से कोटा में बाहर से स्टूडेंट्स का आना बन्द हो गया है ऐसे में हॉस्टल में स्टूडेंट्स कहां से आएंगे. हालात ऐसे है कि  हॉस्टल की कमाई शून्य है और होस्टल में काम करने वाले वार्डन, सिक्योरिटी स्टाफ, सफाई कर्मचारी आदि को तनख्वाह देना भी मुश्किल हो रहा है. ऐसे में हॉस्टल संचालकों के लिए बैंक की किश्त चुका पाना बहुत मुश्किल हो रहा है.

हालांकि कोरोना और लॉक डाउन के की वजह से 31 अगस्त तक बैंक की किश्त जमा करवाने में छूट मिली हुई थी लेकिन अब एक सितंबर से बैंक की किश्तें भी चुकानी पड़ रही है. कोटा में हॉस्टल इंडस्ट्री से जुड़े हुए हज़ारों लोगों का रोज़गार छिन गया है. हॉस्टल संचालक राज्य सरकार और केंद्र सरकार से भी मदद की गुहार लगा चुके हैं.

सरकार ने लोन मोरेटोरियम की सुविधा एक सितंबर से बंद कर दी है, ऐसे में किश्त चुकाने के लिए बैंक की तरफ से आ रहे मैसेज और फोन ने हॉस्टल मालिकों की चिंता बढ़ा दी है। लॉकडाउन से पहले किश्त के रूप में हर महीने लगभग 250 करोड़ रुपए चुकाए जा रहे थे. अब हालत यह हो गई है कि खर्च चलाने के लिए कई हॉस्टल मालिकों ने दूसरा कारोबार शुरू कर दिया है और कुछ को हॉस्टल का सामान तक बेचना पड़ गया है.

हॉस्टल एसोसिएशन के पूर्व महासचिव पंकज जैन का कहना है कि एक बड़े हॉस्टल पर कम से कम 30 से 40 हजार रुपए हर महीने खर्च हो रहे हैं. एक हॉस्टल में 10 से 15 लोगों को रोज़गार मिलता है. इसके अलावा करीब 3 लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हुए हैं.

कोटा हॉस्टल संयुक्त संघर्ष समिति का गठन

नियमानुसार तीन किश्त जमा नहीं होने पर बैंक लीगल नोटिस भेजता है. उसके बाद एनपीए की प्रक्रिया शुरू कर देता है। उसके बाद भी किश्त जमा नहीं होने पर भवन को सीज कर कब्जे में लेने की कार्रवाई होती है। ऐसे हालात को देखते हुए अगस्त के महीने में कोटा हॉस्टल एसोसिएशन, चम्बल हॉस्टल एसोसिएशन एवं कोरल हॉस्टल एसोसिएशन के सदस्यों ने सर्वसम्मति से कोटा हॉस्टल संयुक्त संघर्ष समिति का भी गठन किया है.

संघर्ष समिति के सदस्य जिला कलक्टर से मुलाकात कर मोरिटोरियम अवधि मार्च 2021 तक स्थगित करने की मांग कर चुके हैं और मांग पूरी नहीं होने पर हॉस्टल संचालकों ने सरकार से इच्छामृत्यु की मांग के साथ ही एक बड़े जनआंदोलन का भी ऐलान किया है.

संघर्ष समिति के सदस्य चम्बल हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष शुभम अग्रवाल, कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल, महासचिव पंकज जैन, कोरल हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील अग्रवाल, वीरेन्द्र पांड्या ने संयुक्त रूप से कहा कि कोटा के हॉस्टल संचालक अपने लोन की किस्त चुकाने में असमर्थ हैं. यदि जिला प्रशासन ने बैंकों की बैठक लेकर मोरिटोरियम अवधि को मार्च 2021 तक के लिए आगे नहीं बढ़वाया तो हम सभी मिलकर इच्छा मृत्यु की मांग करेंगे. संघर्ष समिति में कोचिंग बंद होने से जो भी व्यवसाय प्रभावित हुए हैं, वे सभी शामिल हैं.

हॉस्टल व्यवसाय, सब्जी विक्रेता, राशन विक्रेता, ऑटो वाले, मोबाइल शॉप, मैस और अन्य व्यवसाय भी सीधे रूप से कोचिंग व्यवसाय से ही जुड़े होने के कारण बहुत बड़ा आर्थिक संकट कोटा शहर पर छाया हुआ है. सभी काम धंधे ठप पड़े हुए हैं. हालात ऐसे है कि बैंकों में जहाँ पहले करोड़ों रूपये का लेन देन रोज हुआ करता था वहां अब व्यवसायी लोन की किश्त चुकाने में भी असमर्थ हैं.

प्रतिनिधि मंडल ने लोकसभा अध्यक्ष को बताई परेशानी

स्कूल और कोचिंग में क्लासरूम पढ़ाई शुरू कराने की मांग को लेकर कोटा शिक्षा विकास मंच का प्रतिनिधि मंडल एक अक्टूबर मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष और कोटा सांसद ओम बिरला से भी उनके कोटा आवास पर  मिल चुका है. जिस पर लोकसभा अध्यक्ष ने सरकार से जल्द कक्षाएं शुरू करवाने की घोषणा करवाने का आश्वासन दिया था.  प्रतिनिधि मंडल में एलन स्टूडेंट्स वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष मुकेश सारस्वत, विवेक राजवंशी, एलबीएस के चेयरमैन कुलदीप माथुर, बीएसएन के निदेशक डॉ. नकुल विजय, सर्वोदय स्कूल के निदेशक डॉ. अजहर मिर्जा, मां भारती स्कूल के निदेशक शलभ विजय सहित कई स्कुल और कोचिंग के प्रतिनिधि शामिल थे.

कोटा की एक प्रतिष्ठित कोचिंग में फिजिक्स पढ़ाने वाले अंकित विजयवर्गीय ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए कहा कि, “लॉकडाउन के बाद कोटा की सभी कोचिंग में पढ़ाई बन्द होने से कोचिंग में पढ़ाने वाली फैकल्टी भी बेरोज़गार हो गई है. गली मोहल्लों में अलग अलग सब्जेक्ट की चलने वाली छोटी कोचिंग क्लास भी अब बन्द हो गई है. बड़ी कोचिंग वालों ने ऑनलाईन कोचिंग शुरू कर दी है लेकिन अभी भी भारत में ऑनलाइन पढ़ाई का पूरी तरह माहौल नहीं बन पाया है.

ऑनलाइन पढ़ाई से ना तो बच्चे खुश हैं और ना ही पेरेंट्स. फैकल्टी अब ऑनलाइन ही क्लास ले रही है लेकिन उसका बहुत ज्यादा अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है. पिछले 6 महीने से कोचिंग की फैकल्टी बेरोजगार ही बैठी हुई है और अब तो कोचिंग मालिकों ने फैकल्टी को जॉब से निकालना भी शुरू कर दिया है. पहले कोटा की कोचिंग में पूरे साल फैकल्टी का रिक्रूटमेंट हुआ करता था लेकिन अब किसी भी कोचिंग में कोई वैकेंसी नहीं है. ऐसे में कोटा के ज्यादातर कोचिंग पढ़ाने वालों ने या तो टीचिंग की जॉब को छोड़ने का मन बना लिया है या उच्च शिक्षा का रुख कर लिया है.”

इंडिया टुमारो से बात करते हुए गोल्डन होम्स होस्टल के संचालक जुनैद खान ने बताया कि, “कोचिंग बन्द होने से बाहर से स्टूडेंट्स कोटा नहीं आ रहे हैं जिससे होस्टल खाली पड़े हुए हैं. जिन हॉस्टल मालिकों ने लोन लेकर बिल्डिंग बनाई थी उनकी परेशानी यह है कि वो पिछले 6 महीने से बैंक की किश्त भी नहीं चुका पा रहे हैं. दूसरे वो लोग हैं जो लीज़ पर बिल्डिंग लेकर हॉस्टल चला रहे थे लेकिन हॉस्टल में बच्चे नहीं होने की वजह से वो भी अब बेरोजगार हो गए हैं.”

उन्होंने बताया, “जो लोग हॉस्टल में कई सालों से काम कर रहे थे उनके परिवार को खर्च के लिए आधी सैलरी देनी पड़ रही है. ये आधी सैलेरी तो हॉस्टल संचालक को अपनी जेब से देनी पड़ रही है. गवर्नमेंट ने बिजली के बिल भी माफ नहीं किए हैं, प्राइवेट बिजली कम्पनियां लॉकडाउन में भी हॉस्टल की बिजली के बिल हमसे वसूल कर रही हैं. अवसाद और कर्ज में डूबे कुछ होस्टल संचालकों ने तो आत्महत्या भी कर ली है. कोटा में हर साल करीब 2 लाख स्टूडेंट्स आते हैं और एक स्टूडेंट हर साल 3 से 4 लाख रूपए खर्च करता है. कोचिंग बन्द होने से पूरे कोटा की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है. हमने लोकसभा अध्यक्ष और कोटा सांसद ओम बिड़ला से भी मुलाक़ात कर जल्दी ही कोचिंग खोलने की गुहार लगाई है ताकि सारा सिस्टम फिर से पटरी पर आ सके.”

इंडिया टुमारो को पंजाबी मैस कोटा के संचालक गगनदीप सरदार ने बताया कि, “कोटा में पूरे देश के कोने कोने से स्टूडेंट्स आते हैं इसलिए अलग अलग क्षेत्र के हिसाब से यहां पर कई मेस चल रही थी जैसे गुजराती, पंजाबी, साउथ इंडियन, नॉन वेज, जैन , उड़िया आदि साथ ही अलग अलग रीजन के हिसाब से ही फास्ट फूड के स्टॉल भी हुआ करते थे, जैसे बिहार अंडा कॉर्नर, झारखंड अंडा कॉर्नर, फ्रूट वाले, पानी पताशी वाले, पोहा जलेबी  नाश्ता वाले, कोचिंग बन्द होने से मैस और टिफिन सेंटर का बिजनेस पूरी तरह से ठप हो गया है. एक मेस में 10 से 15 लोगों का स्टाफ काम करता था जो अब बेरोज़गार हो गए हैं.”

कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि कोटा में करीब 3 हजार हॉस्टल हैं, जिनमें लगभग सवा लाख कमरे हैं. यहां से हर साल करीब 12 सौ करोड रु. का कारोबार होता था. पीजी से भी करीब 450 करोड़ रु. का कारोबार था.

नवीन कहते हैं कि हॉस्टल संचालकों के सामने बड़ी मुसीबत है. हर हॉस्टल पर औसतन एक करोड़ रु० का क़र्ज़ है. एक-एक हॉस्टल पर हर माह 90 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक की ईएमआई आती है. ऐसे में बच्चे नहीं रहेंगे तो इन किश्तों को भरना संभव नहीं है.

राजस्थान का एजुकेशन सिटी कहे जाने वाले कोटा शहर के लिए कोरोना काल काफी बुरा साबित हो रहा है. कोचिंग इंडस्ट्री के साथ जुड़े हुए दूसरे व्यवसाय जैसे हॉस्टल, मेस, स्टेशनरी, ऑटो टैक्सी आदि भी संकट से जूझ रहे हैं. ऐसे में सब की उम्मीद अब ऊपर वाले पर ही टिकी है कि जल्द से जल्द कोरोना संकट का समाधान होगा और कोटा शहर स्टूडेंट्स के आने से फिर से गुलज़ार होगा.

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