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Tuesday, April 23, 2024
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कोविड-19: पुणे के सेक्स वर्कर्स देह व्यापार को छोड़ने पर विचार कर रहे

रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश सेक्स वर्कर्स 25 से 45 के आयुवर्ग के हैं. उनमें से कईयों को इस व्यापार में तब धकेल दिया गया जब वो नाबालिग थे. रिपोर्ट के अनुसार 82 प्रतिशत से अधिक सेक्स वर्कर्स ने किसी भी प्रकार की औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की और बाकी 16 प्रतिशत को हाई स्कूल के पहले ही देह व्यापार में धकेल दिया गया.

स्टाफ रिपोर्टर | इंडिया टुमारो

पुणे | पुणे शहर के बुधवार पेठ से संचालित होने वाले कामर्शियल सेक्स वर्कर्स (CSW) में से अधिकांश ने देह व्यापार को छोड़कर आजीविका के अन्य साधनों को तलाशने की इच्छा व्यक्त की है.

सेक्स वर्कर्स ने अपनी यह इच्छा आशा केयर ट्रस्ट द्वारा किए गए एक सर्वे में व्यक्त की है. आशा केयर ट्रस्ट दो दशकों से भी अधिक समय से सेक्स वर्कर्स के बीच काम कर रहा है.

देह व्यापार को अलविदा कहने की इच्छा के पीछे दो कारण हैं. पहला यह कि कोविड के कारण आय का बिल्कुल शून्य हो जाना और दूसरा वेश्यालयों के उनके मालिकों और मैनेजरों द्वारा किया जाने वाला शोषण.

सेक्स वर्कर्स की आय उनके परिवार की मदद के लिए कम होना

सर्वे में शामिल 87 प्रतिशत सेक्स वर्कर्स ने बताया कि कोविड महामारी से पहले भी उनकी आय खुदके और परिवार के पालन पोषण के लिए पर्याप्त नहीं थी. शिक्षा और रोज़गार योग्य कौशल की कमी ने उन्हें देह व्यापार अपनाने और फिर इसी चक्र में फंसे रहने के लिए मजबूर किया.

सर्वे के अनुसार कमर्शियल सेक्स वर्कर्स की एक बड़ी तादाद अब आजीविका के दूसरे साधनों की तलाश करना और देह व्यापार से छुटकारा पाना चाहती हैं.

सेक्स वर्कर्स की व्यथा को गहराई से जानने के बाद रिपोर्ट यह कहती है कि अधिकांश सेक्स वर्कर्स महामारी के ख़त्म होने के बाद भी देह व्यापार को दुबारा अपनाने से डरते हैं.

रिपोर्ट कहती है कि महामारी शुरू होने के साथ ही उनकी आय एक बहुत बुरे स्तर पर पहुंच गई, जिसने उनके पास नगदी की कमी का कारण बनी और ग्राहकों से कमाई जाने वाली प्रतिदिन की आय को ख़तम कर दिया. सर्वे के अनुसार 99 प्रतिशत से भी अधिक सेक्स वर्कर्स अब मौका मिलने पर आय के दूसरे विकल्पों को अपनाना चाहते हैं. रिपोर्ट बताती है कि लॉक डाउन के दौरान सेक्स वर्कर्स की मांग कम हुई जिसके कारण उन्हें उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.

महामारी के ख़त्म होने के बाद भी देह व्यापार को अपनाने में डर

सर्वे के अनुसार, 92.7 प्रतिशत सेक्स वर्कर महामारी के ख़त्म होने के बाद भी देह व्यापार को अपनाने से डर रहे हैं, लेकिन इसके साथ उन्हें भूखे मरने की भी चिंता है क्योंकि किसी और तरीके से पैसे कमाने में वो सक्षम नहीं हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, मैनेजरों द्वारा किए जाने वाले शोषण ने उन्हें आजीविका के लिए चिंतित कर दिया है, जबकि 68 फीसदी का मानना ​​है कि आने वाले दिनों में सेक्स व्यापार में तेजी आएगी, 99 फीसदी का कहना है कि अगर कोई अवसर दिया जाता है तो वे अन्य किसी भी आजीविका के साधन को अपनाएंगे.

रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश सेक्स वर्कर्स 25 से 45 के आयुवर्ग के हैं. उनमें से कईयों को इस व्यापार में तब धकेल दिया गया जब वो नाबालिग थे. रिपोर्ट के अनुसार 82 प्रतिशत से अधिक सेक्स वर्कर्स ने किसी भी प्रकार की औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की और बाकी 16 प्रतिशत को हाई स्कूल के पहले ही देह व्यापार में धकेल दिया गया.

ट्रस्ट द्वारा किए गए सैंपल सर्वे में कहा गया है कि 85 प्रतिशत से अधिक वर्कर्स ने कर्ज़ लिया है और उनमें से 98 प्रतिशत से अधिक ने अपने वेश्यालय के मालिकों, प्रबंधकों और साहूकारों से लिया है, जिसकी वजह से उनके आगे भी शोषण की संभावना बढ़ जाती है. बुधवार पेठ इलाका पुणे का सबसे बड़ा और एकमात्र रेड लाइट एरिया है और भारत का अपने प्रकार का तीसरा सबसे बड़ा इलाका है, जिसमें  लगभग 700 वेश्यालय और लगभग 3,000 कमर्शियल सेक्स वर्कर्स हैं. सर्वे में उनमें से केवल 3000, अर्थात् बुधवार पेठ के 10 प्रतिशत सेक्स वर्कर्स ही शामिल हैं.

कोविड महामारी के दौरान वैकल्पिक आजीविका की आवश्यकता को बताते हुए एक सेक्स वर्कर नीलू ने कहती हैं, “हम पिछले 4-5 महीनों से बहुत कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. हर गुज़रते दिन के साथ हमारे लिए जीवित रहना मुश्किल हो रहा है क्योंकि हमारे पास न तो कोई कमाई है और ना ही कोई बचत है. हम सभी यहां व्यवसाय शुरू करने के लिए बाध्य हैं क्योंकि हमारे पास आजीविका का कोई दूसरा साधन नहीं है. यदि मौका मिले तो मैं आजीविका के दूसरे साधन अपनाना चाहूंगी ताकि मेरे पास अपने और अपने बच्चों को पालने के लिए आय का बेहतर श्रोत हो.”

ट्रस्ट फाउंडर शीला शेट्टी कहती हैं, “कोविड-19 महामारी ने हमें मुख्यधारा के समाज में सेक्स वर्कर्स के पुनर्वास के लिए एक सिस्टम बनाने का अवसर दिया है. हमारे सर्वेक्षण से पता चलता है कि लगभग बुधवार पेठ इलाके के सभी वर्कर्स आजीविका के अन्य साधनों को तलाश रहे हैं.

ट्रस्ट की संस्थापक शीला शेट्टी कहती हैं कि जो महिलाएं देह व्यापार से बाहर निकलती हैं उन्हें कर्ज़ उतारने के लिए ट्रैफिकिंग रिलीफ़ फंड दिया जाना चाहिए ताकि वो अपनी ज़िंदगी का नया अध्याय शुरू कर सकें.

इंडिया टुमॉरो से बात करते हुए शेट्टी ने कहा कि, “हमनें राज्य सरकार से भी कमर्शियल सेक्स वर्कर्स को आर्थिक सहायता देने का अनुरोध किया है. हम खुद भी उनके लिए सम्मानित आजीविका सुनिश्चित करने के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू करने वाले हैं.”

पुणे के मेयर मुरलीधर मोहोल ने इंडिया टुमॉरो को बताया कि, “यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है और हम एक नागरिक निकाय के रूप में इनकी मांगों पर गौर करेंगे. कोविड-19 और इसके प्रभावों ने न सिर्फ़ अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया है बल्कि कमर्शियल सेक्स वर्कर्स की आजीविका को भी नुकसान पहुंचाया है. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि उनकी मांगों को पूरा किया जाए और उनके लाभ और आर्थिक विकास के लिए कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किए जाएं.

रेड लाइट एरिया में काम करने वाले फ्रीडम फर्म नामक एक स्थानीय एनजीओ के एक प्रतिनिधि ने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा है कि, “यह पहल एक सकारात्मक शुरुआत है. पुणे के रेडलाइट एरिया में 500 से अधिक वेश्यालय हैं जिनमें रातों रात सुधार नहीं किया जा सकता. अब समय आ गया है कि सरकारी अधिकारियों और एनजीओ को इस महत्वपूर्ण समय को कठिनाइयों का सामना कर रहे सेक्स वर्कर्स को एक वैकल्पिक आजीविका देने के लिए उचित अवसर के तौर पर देखना चाहिए. मुझे उम्मीद है कि इस पहल को सरकार और गैर सरकारी संगठन, दोनों से समर्थन मिलेगा और इसके स्थायी प्रभाव सामने आयेंगे.”

आशा केयर ट्रस्ट के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल मेयर मुरलीधर मोहोल से मिला जिसमें सार्वजनिक गणेशोत्सव समिति से शैलेश बडई, इटक कामगार संगठन महाराष्ट्र के योगेश भोकरे, सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिभा शिंदे, पुणे जिला ग्राहक संरक्षण समिति के फैयाज़ शेख़, भोला वंजले और एडवोकेट विद्या पेडनेकर जैसे अन्य संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे. प्रतिनिधिमंडल ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें  कामर्शियल सेक्स वर्कर्स की ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रमों की व्यवस्था करने के लिए निगम के हस्तक्षेप की मांग की ताकि उन्हें अन्य काम काज और व्यवसायों में रोज़गार योग्य बनाया जा सके.

शेट्टी ने कहा कि, “महापौर ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. हमें पूरी उम्मीद है कि जिला प्रशासन इस संबंध में हमारी मदद करेगा. अगले सप्ताह जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ एक बैठक निर्धारित की गई है.

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