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Wednesday, April 24, 2024
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हिजाब पहनने के कारण मीडिया हाउस ने जॉब देने से किया इंकार

अज़हर अंसार | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली, 3 सितंबर | अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की एक मुस्लिम छात्रा उस वक्त स्तब्ध रह गई, जब दिल्ली से निकलने वाली एक हिंदी न्यूज़ वेबसाइट ने उन्हें उनके हिजाब के कारण जॉब देने से इंकार कर दिया. मुस्लिम छात्रा ने अपने ट्विटर ख़ुद इस घटना को साझा किया है.

अलीगढ़ की निवासी और एएमयू में पत्रकारिता की छात्रा गज़ाला अहमद ने ट्विटर पर लिखा कि, “उन्होंने मेरा इंटरव्यू लिया, और मुझे चुनने के बाद सेलेरी तय हुई. ये एक टेलिफोनिक इंटरव्यू था इसलिए मैंने उन्हें बताया कि मैं हिजाब पहनती हूँ और जॉब के दौरान भी पहनती रहूंगी. इसके बाद इंटरव्यू लेने वाला शांत हो गया और फिर कहा कि मैं आपके आवेदन को स्वीकार नहीं कर सकता हूँ.”

इंडिया टुमारो से बात करते हुए गज़ाला ने साझा किया कि किस प्रकार इंटरव्यू में चयन होने के बाद भी उसकी पहचान के कारण जॉब देने से इंकार कर दिया गया.

गज़ाला ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मॉस कम्युनिकेशन में मास्टर्स किया है. उन्होंने अपनी एक दोस्त के सुझाव पर दिल्ली से संचालित होने वाली एक हिंदी न्यूज़ वेबसाइट में 30 अगस्त को सोशल मीडिया मैनेजर के लिए आवेदन किया. उसी दिन वेबसाइट की तरफ से उन्हें एक प्रतिनिधि ने कॉल किया और बताया कि वे उन्हें एक एंकर के तौर पर रखना चाहते हैं. उसके लिए गज़ाला ने हां कर दी. फिर सेलेरी और जॉइनिंग की तारिख तय होने के बाद जब गज़ाला ने उन्हें अपने हिजाब के बारे में बताया तो दूसरी तरफ से लगभग 3 मिनट तक कोई जवाब नहीं आया. उसके बाद उन्होंने कहा कि हम आपको नहीं रख सकते हैं, आप समझ नहीं रहे हैं ये हिंदुस्तान हैं.”

इंडिया टुमारो से बात करते हुए गज़ाला ने घटनाक्रम को साझा करते हुए कहा कि, उसने न्यूज़ वेबसाइट को ये भी बताया कि वो पहले भी न्यू इंडियन एक्सप्रेस और एनडीटीवी जैसी संस्थाओं के साथ काम कर चुकी हैं और उनका हिजाब कभी भी उनके काम में समस्या नहीं रहा. उनकी प्रतिभा, काम की गुणवत्ता और पत्रकारीय गुणों पर उनका हिजाब कोई प्रभाव नहीं डालता है.

गज़ाला ने बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने वेबसाइट से इसे एक अवसर के रूप में इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था. एक हिजाबी लड़की को एंकर के रूप में जगह देकर वें एक उदहारण प्रस्तुत कर सकते हैं.

हालांकि, वेबसाइट ने किसी भी तरह उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया. अपने हिजाब के कारण अस्वीकार किए जाने से गज़ाला अहमद को काफी निराशा हुई है. वें दुखी हैं कि एक मीडिया समूह द्वारा प्रतिभा और पत्रकारीय गुणों को देखने के बजाय उनके हिजाब करने और नहीं करने के आधार पर नौकरी देने का फैसला किया जा रहा है.

गज़ाला का मानना है कि एक एंकर के लिए किसी मीडिया समूह के ज़रिए ये नियम लागू करना कि वो हिजाब न पहने एक तरह से नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है. बल्कि ये नागरिक अधिकारों और समानता की बात करने वाले लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने के नाते मीडिया के लिए खतरनाक भी है.

गज़ाला अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में साल 2016-17 के छात्रसंघ में कैबिनेट की सदस्य भी रही हैं. वे बताती हैं कि 2016 से ही वे हिजाब पहनती हैं और उन्होंने हिजाब पहनने का फैसला अपने परिवार या समाज के दबाव में नहीं लिया था. उनके परिवार में कोई हिजाब भी नहीं पहनता लेकिन वे अपनी स्वेच्छा से हिजाब करती हैं.

वे कहती हैं कि इस समय जब तथाकथित प्रगतिशील लोग हिजाब को एक रुढ़िवादी प्रथा के रूप में देखते हैं और इस्लामोफोबिक मानसिकता को बढ़ावा देते हैं उसके बावजूद वें हिजाब पहनने के अपने फैसले को एक प्रगतिशील कदम के रूप में देखती हैं और वें आश्वस्त हैं.

गौरतलब है कि इस तरह की घटना नई नहीं है जब एक मुस्लिम लड़की को उसके हिजाब के कारण किसी तरह की नौकरी देने से इंकार किया गया हो. पिछले सालों में भी हिजाब के कारण दिल्ली और मुम्बई जैसे शहरों में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं से मुस्लिम लड़कियों को बाहर कर दिया गया था.

पिछले साल जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एमबीए की छात्रा उमैया खान को उनके हिजाब के कारण नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट में नहीं बैठने दिया गया था.

इसी तरह का मामला मुम्बई और दुसरे शहरों में भी देखने को मिला था. ये देश में बढ़ती इस्लामोफोबिक मानसिकता को दर्शाता है. किसी भी इन्सान की प्रतिभा और उसके काम की गुणवत्ता का आंकलन उसका धर्म और उसके पहनावे को देखकर करना हमारे समाज की सोच के स्तर को दर्शाता है.

गज़ाला अहमद को एक एंकर के रूप में अस्वीकार किए जाने का ये मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि ऐसा करने वाला मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाली एक वेबसाइट है. जिस मीडिया के बारे में लोग ये सोचते हैं कि वो समाज से इस तरह की सोच ख़त्म करने के लिए लोगों को शिक्षित करेगा आज वही मीडिया धार्मिक पहचान को लेकर पक्षपाती हो चुका है.

मीडिया संस्थानों में हिजाब के कारण रोके जाने का एक मामला इस साल जनवरी में भी सामने आया था. जब एक न्यूज़ चैनल ने शाहीन बाग की एक मुस्लिम महिला को डिबेट में आने से पहले हिजाब हटाने के लिया कहा था.

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